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ईद पर 115 मुस्लिमो को जेलों से छोड़ा गया, हिन्दुओ पर नहीं दिखाई जाती कोई दया, हिन्दू सड़ता रहे

ईद पर 115 मुस्लिमो को जेलों से छोड़ा गया, हिन्दुओ पर नहीं दिखाई जाती कोई दया, हिन्दू सड़ता रहे






एक बार फिर से निभाई जाएगी धर्मनिरपेक्षता और बुलंद किये जायेगे तथाकथित मानवता के नए मापदंड .. महबूबा मुफ़्ती शासित और भारतीय जनता पार्टी समर्थित सरकार उठाने जा रही है एक बड़ा कदम जो देगा उनके सरकार को धर्मनिरपेक्ष होने का एक बड़ा मैडल और वाहवाही के साथ तथाकथित बुद्धिजीवी और मानवाधिकारवालों के बीच में तालियों का मौक़ा ..
लेकिन इसको माना जाएगा एकतरफा फैसला क्योकि सरकार के इस पूरे लिस्ट में उनका नाम कहीं नहीं है जो उनके हिसाब से सेकुलरिज़्म के पैमाने पर सही नहीं बैठ रहे हैं 
ज्ञात हो की भले ही कश्मीर में सरकार की तमाम शांति कोशिशों को झटका देते हुए ईद के मौके पर भी भले ही आतंकी अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहे हों, लेकिन सरकार हर स्तर पर नरम रवैया अपना रही है. अब जब भारत का ही नहीं पूरी दुनिया का मुसलमान ईद की खुशियों में मशगूल है, ऐसे मौके पर जम्मू और कश्मीर सरकार ने 115 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया है.
मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने राज्य की विभिन्न जेलों में बंद ऐसे 115 कैदियों को रिहा करने के आदेश दिए हैं,. महबूबा मुफ्ती ने कैदियों की रिहाई का आदेश देकर एक बार फिर लोगों को पैगाम देने की कोशिश की है कि सरकार अपनी राह से भटके लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.
राज्य सरकार के इस कदम का विभिन्न राजनीतिक दलों ने स्वागत किया है किसी एक संगठन ने भी इसका विरोध नहीं किया और सबने इसको मानवता और धर्मनिरपेक्षता की जीत घोषित कर दिया . गठबंधन में शामिल भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि जेल से छूट कर ये लोग अपने परिवार के साथ ईद मनाएंगे, इससे बढ़कर ईद का तोहफा और क्या हो सकता है.
लेकिन यहाँ ध्यान रखने योग्य है की उड़ीसा की जेल में दारा अभी भी 20  साल से बंद है जिसका नाम लेने के लिए अब तक एक भी आवाज नहीं उठी है . धर्मांतरण की बुलंद आवाज बन कर एक बार दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ दारा सिंह शायद ही इस जन्म में अब अपनी सांस स्वतंत्र हवा में ले सके क्योकि उसको छोड़ने के लिए तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत सामने आ रहे हैं .
बहुत प्यास के बाद भी दारा सिंह पर गठित आयोग वधवा आयोग ऐसा ठोस प्रमाण नहीं पेश किया जा सका जिससे दारा सिंह को किसी के इशारे पर कार्य करता हुआ साबित किया जा सके … जब वधवा आयोग ने अपनी ये निष्पक्ष रिपोर्ट पेश की तब कुछ तथाकथित धर्मनिरपेक्ष टीम ने इस आयोग पर ही सवाल उठाने शुरू कर दिए …
वधवा आयोग की विश्वसनीयता, उसकी निष्पक्षता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया गया … एक ऐसी पुस्तक छाप दी गयी जिसके विमोचन में कुछ महीनों प्रधानमंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल तक पहुंच गए थे … क्या दारा के लिए होली दिवाली नहीं बनी है , कश्मीर के वो 115 कैदी ईद मना सकें इसके लिए सरकार ने उनका ध्यान रखा लेकिन जिस दारा के माता पिता एक एक कर के चल बसे उस दारा को उनके अंतिम संस्कार तक में जाने का समय नहीं दिया गया .. उड़ीसा जेल की दीवारे 20 साल से सवाल कर रही हैं कश्मीर की जेलों से की मज़हब के अलावा उन दोनों में क्या अंतर् हैं .

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