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फ़िल्म 'शोले' में एक क़िरदार था "हरिराम नाई", जो कि खुद एक क़ैदी है, लेकिन अपने जेलर के लिए जासूसी करता है, हरिराम नाई की एक ही ख़ासियत थी कि जेल में कहीं कुछ भी ग़लत हो रहा हो या जेलर के ख़िलाफ़ कोई साज़िश चल रही हो तो उस बात की भनक लगते ही दौड़कर जेलर को, वो बात बताना, बिना इस बात की तस्दीक किये कि उस बात में सच्चाई है या नहीं ....
फ़िल्म के नायक जय और वीरू जो कि जेल में सज़ा काट रहे थे उनको जब पता चलता है कि हरिराम नाई कच्चे कान का है और तुरंत सारी खबरें जेलर को दे देता है तो वो पहले जेल में सुरंग बनाने की खबर कानाफूसी करके हरिराम को सुनाते हैं और जेलर का हाथ गर्म सरिये से जला देते हैं फिर जेल में पिस्तौल आने की कानाफूसी करके लकड़ी के टुकड़े को पिस्तौल बनाकर जेलर को डराकर जेल से बाहर भाग जाते हैं।
शोले के इस हरिराम नाई जैसे ही बहुत से लोग हैं जो बात को बिना जाँचे परखे सिर्फ हड़बड़ी में ही एक दूसरे तक पहुँचाने में लगे रहते हैं। कानाफूसी को सच मान लेते हैं और इधर से उधर बात को फैलाते चले जाते हैं। आप लाख अच्छे काम कर लो लेकिन कोई एक ग़लती जो आपने जानबूझकर नहीं की हो या उसके गलती की असल वजह कुछ और हो उसे जाने बिना ही आपकी तमाम अच्छाईयों को एक पल में भुला दिया जाता है। जब उरी हमला हुआ तब भी पूरा देश आगबबूला होकर टूट पड़ा। मोदी को हिजड़ा, कायर, चूड़ी पहन लो, फेंकू, नवाज़ शरीफ की बिरयानी खाने वाला जाने क्या क्या नहीं कहा गया।
लेकिन फिर सर्जिकल स्ट्राइक हो गई, मोदी ने पाकिस्तान में सैनिक भेजकर कई आतंकियों और आतंकी कैम्पों का सफाया कर दिया वो भी अपना एक भी सैनिक गँवाये बिना। पाकिस्तान को उसके घर में ही घुसकर मारने का ऐसा प्लान कोई भी देशवासी सपने में भी नहीं सोच सकता था लेकिन मोदी ने कर दिखाया। देश की जनता फिर मोदी मोदी करने लगी लेकिन तब भी कांग्रेस पार्टी ने इसे खून की दलाली बताया, फ़र्जीकल स्ट्राइक क़रार दिया और इन सबसे बढ़कर केजरीवाल ने तो इस सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत ही माँग लिए।
कश्मीर में सेना को खुली छूट देने के बाद से सेना आजतक तक 200 से ज़्यादा आतंकियों को जहन्नुम भेज चुकी है। जब एक सैनिक मतदान दल की जान बचाने के लिए एक पत्थरबाज़ को जीप पर बाँधकर ले गया तो उसकी आलोचना करने वाले भी बहुत थे। कांग्रेस के ही एक नेता ने सेना को गुंडा तक कह दिया था।
फिर डोकलाम का मामला हुआ, भारत ने अपने कदम आखिर तक पीछे नहीं खींचे तो नहीं खींचे। चीन रोज़ नई नई धमकियाँ देता लेकिन भारत ने कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दी। आखिरकार चीन को पीछे हटना ही पड़ा। मोदी की बजाय अगर मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री होते तो कबका चीन के आगे घुटने टेक चुके होते नोटबंदी में पूरे देश को लाइन में खड़ा करने का भी साहस इसी मोदी में था। जिस देश में मंदिरों, मस्जिदों, क्रिकेट मैच के टिकटों की लाइन में लगकर कभी कोई नहीं मरा वहीं इस नोटबंदी की लाइन में कई लोग मर(?) गए। विपक्ष तो इन लोगों को 'शहीद' का दर्जा देने पर तुला था।
गुजरात मोदी का गढ़ है मोदी को हरा पाने में नाकाम कांग्रेस ने मोदी को गुजरात में हराने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना लिए। जातिवाद का ज़हर फैलाया, तीन युवाओं को नायक बनाकर उनके साथ हाथ मिलाया, मंदिर मंदिर जाकर खुद को जनेऊधारी बताया, मोदी को नकली हिन्दू बताया, जीएसटी को गब्बरसिंह टैक्स बताया, बेरोजगारों को भत्ता देने, किसानों के कर्ज़ माफ करने, पेट्रोल डीज़ल सस्ता करने का वादा किया, सोशल मीडिया पर फर्जी मैसेजेस फैलाये, विकास को पागल बताया। हर तरह के हथकंडे अपनाकर कांग्रेस ने गुजरात की जनता का विश्वास हिला तो दिया लेकिन पूरी तरह से तोड़ने में नाकाम ही रहे। मोदी की विश्वसनीयता पर गुजरात ने मोहर लगा ही दी।
जिस आदमी की दिन भर में ली हुई साँसों और दिल की धड़कनों की भी गिनती विरोधियों के पास रहती है वो मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए और अब प्रधानमंत्री रहते हुए भी भ्रष्टाचार का एक भी मामला पकड़ नहीं पाई है, जिस प्रधानमंत्री का परिवार आज भी एक बेहद सामान्य जीवन जीता है जबकि कई छुटभैये नेता भी आजकल जुगाड़ से अपनी और अपनी एक दो पीढ़ियों की जुगाड़ कर लेते हैं वहीं मोदी ने आजतक न अपने लिए न अपने परिवार के लिए कुछ जुगाड़ किया है। 2014 में कांग्रेस ने मोदी को कम आँका था, अपने दम पर मोदी बहुमत ले आयेंगे इसकी उम्मीद न तो मीडिया को न थी न ही विपक्ष को।
इसके बाद एक के बाद चुनावों में हार से बौखलाई कांग्रेस मोदी को हर क़ीमत पर सत्ता से बेदखल करना चाहती है। अब उसे समझ आ गया है कि मोदी उसके इतिहास का सबसे बड़ा रोड़ा बनकर सामने आया है जो हर कदम कांग्रेस की राह मुश्किल करता जा रहा है। इसी मोदी के समय में ही माँ बेटे पहली बार कोर्ट गए आरोपी बनकर और बाक़ायदा ज़मानत पर छूटे हैं। आज भी आरोपी ही हैं। यही कांग्रेस तब भी खूब बौखलाई थी, इसे बदले की राजनीति बता रही थी और ज़मानत मिलने पर कांग्रेसी ऐसे खुश हुए थे मानों विश्व कप जीत लिया हो।
अंग्रेज़ी में एक कहावत है - "Don't trust people whose feelings changes with time, instead trust people whose feelings remains the same even when time changes", इतना ज़्यादा अपनी भावनाओं में बदलाव लाना ठीक नहीं, पहले हम तथ्यों को समझें, थोड़ा वक़्त दें, अपने नेता के इतिहास को देखें उसके अथक परिश्रम को समझें। हरिराम नाई जैसों पर विश्वास करने वालों के हाथ जरूर जलते हैं !! हर बार, बार बार हरिराम नाई न बनें .....
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