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2010 से ही सुप्रीम कोर्ट में मिलार्ड के सामने राम मंदिर का मामला है, हिन्दुओ को उनके देश में ही राम मंदिर नसीब नहीं हो रहा है, हिन्दू तरस रहे है की कब फैसला आये, बहुसंख्यको की भावनाओ का कोर्ट कितना सम्मान करता है, ये आज देखने को भी मिल गया
पहले आपको बता दें की कई बार सुप्रीम कोर्ट के सामने बकरीद के खिलाफ याचिका आयी है, की जानवरों की मजहब के नाम पर कटाई पर रोक लगाई जाये, पर सुप्रीम कोर्ट ने हर बार इसे धार्मिक भावनाओ का मामला बताकर खारिज कर दिया है, हालाँकि जलीकट्टू पर इसी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाया था, परन्तु बकरीद चुकी मुसलमानो की धमकी भावना से जुड़ा हुआ है इसलिए उसपर कोर्ट सुनवाई भी नहीं करना चाहता
5 दिसंबर को मिलार्ड ने राम मंदिर केस की तारीख दी थी 8 फ़रवरी 2018, जो की आज है, और आज मामले की सुनवाई हुई, कुछ देर में मिलार्ड बोले की अब ये मामला 14 मार्च को सुना जायेगा, मतलब फिर 1 महीने से ज्यादा समय तक के लिए राम मंदिर लटका दिया गया
इस बार सुनवाई में एक पक्ष ने ये कह दिया की मामला 100 करोड़ हिन्दुओ की धार्मिक भावना से जुड़ा हुआ है, इसी कारण कोर्ट जल्द इसका फैसला करे, इसपर कोर्ट ने कहा की, हम हिन्दुओ की धार्मिक भावना को अहमियत नहीं देते और न ही हिन्दुओ की धार्मिक भावना को देखकर जल्दी कोई फैसला दिया जायेगा, कोर्ट ने साफ़ कर दिया की हिन्दुओ की धार्मिक भावना की उसके सामने कोई अहमियत नहीं है
अब इस से एक चीज तो साफ़ होती है की क्यों जब वामपंथी होली दिवाली जलीकट्टू रामलीला कृष्ण जन्माष्टमी दही हांड़ी इत्यादि के खिलाफ याचिका लगाते है तो मिलार्ड उसे तुरंत सुनते है और फैसला सुनाते है, क्यूंकि हिन्दुओ के धार्मिक भावना की कोई वैल्यू थोड़ी है, वहीँ बकरीद पर आजतक मिलार्ड ने सिर्फ इसलिए फैसला नहीं सुनाया याचिका ख़ारिज करते रहे क्यूंकि ये मुसलमानो की मजहबी भावना से जुड़ा हुआ है
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