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आपसी मतभेद में उलझकर हिन्दू आपस में ही लड़ेगा तो फायदा गौरी-अकबरों का ही होगा !

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अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए "जयचंद" ने "पृथ्वीराज चौहान" के विरुद्ध "मोहम्मद 🐷गौरी" का साथ दिया था | 😡 पृथ्वीराज चौहान की हार को, वो अपनी जीत समझ रहा था,लेकिन बाद में मोहम्मद 🐷गौरी ने उसको पुरस्कार के बजाय *"सजा ए मौत"* दी और यह बोला कि - "जो अपनों का नहीं हुआ वो हमारा क्या होगा" ?

🚩महाराणा प्रताप "महान" से लड़ने के लिए अकबर🐷 ने मानसिंह को भेजा था | यहाँ तक की अकबर की तरफ से महाराणा प्रताप का भाई भी महाराणा प्रताप के खिलाफ ही खड़ा था, आपसी मतभेद थे, आपसी घमंड और न जाने क्या क्या था 

जब अकबर से उसके दरबारियों से पूछा कि -"क्या कोई मुस्लिम सेनापति लड़ने के काबिल नहीं है" ? मानसिंह की जगह किसी मुस्लिम सेनापति को भेजा जाता तो कदापि अधिक फायदा होता 

तो अकबर ने कहा कि - "लड़ाई में दोनों तरफ से चाहे कोई भी मरे, मरेगा काफिर ही और लड़ाई में हार चाहे जिसकी भी हो, विजय हमारी होगी" |🤔🤔🤔और हां जब हल्दीघाटी का युद्ध हुआ तो दोनों तरफ से लड़ने वाले अधिकतर सैनिक हिन्दू ही थे, मुस्लिम सैनिक तो बेहद कम थे जो अकबर की तरफ से लड़ रहे थे, मरने वाले अधिकांश हिन्दू ही थे 

दलित / सवर्ण के नाम पर आपस में लड़ने वालों को  अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश,  मलेशिया,  इंडोनेशिया,  आदि जगहों पर जाकर पता करना चाहिए कि वहाँ के दलितों का बाद में किया हुआ ?  जोगेंद्रनाथ मंडल का बांग्लादेश में क्या हुआ जो की आंबेडकर से भी बड़े दलित नेता माने  जाते थे और जिन्नाह का साथ दे रहे थे, और आज पाकिस्तान और बांग्लादेश में दलितों के साथ क्या होता है ! 

जब तक आपकी आवश्यकता है आपको इस्तेमाल किया जाएगा और बाद बाद में यही कहा जाएगा जो अपनों का नहीं हुआ वो हमारा क्या होगा ? मोहम्मद गज़नी को भी सोमनाथ का रास्ता एक लालची हिन्दू ने ही दिखाया था, बाद में गज़नी ने उसे दौलत नहीं बल्कि उसका सर कलम कर उसे दे दी मौत और ये ही बोला - तू हिन्दुओ का नहीं हुआ तो हमारा क्या होगा 
*जागो हिंदू !! 🚩🚩*

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