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पकौड़ा बेचना नहीं है छोटा काम, कई अरबपति यही काम करते थे, पप्पू नहीं समझेंगे ये बात

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आप टनाटन कपड़े पहन के ID कार्ड की माला लटकाए आफिस से बाहर निकल कर जिस पकौड़े, मैग्गी, ऑमलेट या कुलचे के ठेले पर कभी कभी खा लेते है और चाय पी लेते है हैं ... अपने white collar जॉब के आगे उसको तुच्छ समझते हैं वो भविष्य में 3-5 सितारे के होटल का खोल सकता है ..... फिर आपकी जेब उसके उस होटेल के अंदर कदम रखने का साहस नहीं करने देगी .... 
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ऐसे किस्से चेन्नई - बैंगलोर - हैदराबाद - पुणे अहमदाबाद से लेकर शिमला तक अनेकों मिल जांएगे .... बाकी आप पकौड़े चाय के ठेले लगाने वाले को छोटा काम करने वाला समझ सकते हैं ... ऑनेस्ट नाम की रेस्टोरेंट चेन जो भारत में 800 और विदेशों में 50 रेस्टोरेंट चलाती है उसके मालिक महेश चंद्र गुप्ता मात्र 30 साल पहले अहमदाबाद के लाभ गार्डन के सामने एक ठेले पर भाजी पाव बेचा करते थे .....पश्चिम भारत में आपको जगह-जगह TGB यानी द ग्रैंड भगवती के नाम से फाइव स्टार होटल और रेस्टोरेंट मिलेंगे इसके मालिक भी अहमदाबाद के एस जी रोड पर कभी ठेले पर चाय बेचा करते थे

भारत की प्रसिद्ध रेस्टोरेंट चेन शुद्धता और संदीपा जिसके कुल 600 रेस्टोरेंट है उसकी मालकिन पैट्रिशिया नारायण अपने पति के मौत के बाद मरीना बीच पर काफी बेचा करती थी और उनके पहले दिन की कमाई मात्र 20 पैसे थी, दिल्ली मुंबई और गुड़गांव में साउथ इंडियन रेस्टोरेंट की श्रृंखला सागर रत्ना में खाते हैं आप यह जानकर चौक जाएंगे कि इसके मालिक जयराम बनान कभी गरीबी से तंग आकर उडुपी कर्नाटक से घर से भागकर दिल्ली गए थे और एक रेस्टोरेंट में बर्तन धोने का काम किया फिर उसी रेस्टोरेंट के बाहर चाय बेचने का काम किया और आज 400 रेस्टोरेंट के मालिक है और साथ ही संसद भवन की कैंटीन भी चलाते हैं

काम तो आप शानदार कर रहे हैं उस पर कोई टीका टिप्पणी हम नहीं करते लेकिन मेरा मानना है कि जिस दिन किसी बेरोजगार ने चाय की भट्टी किसी कोने में डाल दी उस दिन उसने अपने 5 सितारे के नींव का पहला पत्थर रख दिया ... ऐसा होना कोई किस्सागोई नहीं है .... 1994 के बाद से ऐसे अनेकों लोगों को देख चुका हूँ गुड़गांव, नोएडा, फरीदाबाद, पुणे में जो कभी इंडस्ट्रियल एरिया में मैग्गी, ऑमलेट, कुलचा छोला का ठेला लगाते थे, आज डुप्लेक्स कोठी में रहते हैं और ऑडी-बेंज चला रहे हैं .... में तब वाइट कालर जॉब करता था ... आज भी वहीं पर हूँ ...... और शायद यही मेरी जिंदगी भी खत्म हो जाएगी क्योंकि हमने किसी चाय वाले किसी पकौड़े वाले किसी ठेले वाले आदि को हेय दृष्टि से देखना सीखा है हमने उसके अंदर उधमी को नहीं पहचाना

और राहुल गाँधी जैस लोग जो की परिवार वाद की उपज है, वो ये चीज समझ ही नहीं सकते की मेहनत और ईमानदारी से किया जाने वाला कोई भी काम छोटा नहीं होता, आपकी मेहनत और ईमानदारी आपको बुलंदियों पर पहुंचाती है, स्वयं धीरूभाई अम्बानी भी ऐसे ही काम करके ऊपर तक पहुंचे थे 

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