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भले ही सुना जाता हो कि आतंक का कोई मत और मज़हब नहीं होता लेकिन जो देखा जा रहा है वो और भी हैरान कर देने वाला है . एक दुर्दांत आतंकी जिसे सेना ने बड़ी लम्बी लड़ाई के बाद मारा हो उसके जनाज़े में जो भीड़ देखने को मिल रही है वो बहुत बड़ी गवाही है इस बात की कि कहीं न कहीं कोई न कोई ऐसा है जो नफरत की फसल बो रहा है जो सीधे सीधे एक महामारी के रूप में फ़ैल रही हैं .
विदित हो कि हिजबुल मुजाहिदीन के जिस आतंकी फरहान को भारतीय सुरक्षा बलों ने कल अनंतनाग के कोकरनाग इलाके में मार गिराया था उसका पूरी इस्लामिक रीति रिवाज़ से अंतिम संस्कार करते हुए दफनाया गया है और इसके साथ उसके जनाज़े में हजारों की भीड़ ने भी हिस्सा लिया . इस भीड़ ने इस्लामिक नारे लगाए हैं और भारत विरोधी नारों से भी वहां का माहौल गूंजता रहा .
फरहान वाणी नाम के इस आतंकी की माता अपने बेटे की लाश के पास काफी देर तक रोती रहीं. वहां सेना विरोधी नारे तो लगे लेकिन शायद ही किसी को इस बात का दर्द रहा हो उन जहर फैलाने वालों के खिलाफ जिन्होंने उसको बहला फुसला कर बहका दिया और आतंकी के रास्ते मौत के मार्ग पर ले गये . इस अवसर पर सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार NIA जांच झेल रहे गिलानी ने इस भीड़ को फोन से सम्बोधित किया था .
वैसे ये अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है, कश्मीर में सभी इस्लामिक आतंकियों के जनाजे में इसी तरह की भीड़ आती है, और अल्लाह हु अकबर, पाकिस्तान के नारे लगाए जाते है, कश्मीर में ही नहीं महाराष्ट्र में जब आतंकी याकूब मेमन को फांसी हुई थी तो उसके जनाजे में भी हज़ारों की मुस्लिम भीड़ आयी थी, और हां ये भी कहा जाता है की आतंक और आतंकी का कोई मजहब नहीं होता
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