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चीन भले ही लोगों से नास्तिक बनने के लिए कहता हो, लेकिन हकीकत यह है कि वहां बने मंदिरों में हिंदुओं के इस भगवान की नियमित पूजा होती है और यहां लोगों की इस भगवान में अपार श्रद्धा है।
आपको शायद ये जानकर हैरानी हो लेकिन ये सच है कि चीन के मंदिरों में भगवान शिव और मां पार्वती की नियमित पूजा होती है। चीनियों ने अपनी भाषा के लिहाज से शिव और पार्वती के नाम रख लिए हैं, लेकिन शिवलिंग वहां मौजूद है।
इसके साथ ही जापान और कोरिया में भी वैदिक, उत्तर वैदिक, मौर्य और गुप्ता वंश के दौरान मंदिरों और धार्मिक गतिविधियों की निशानियां मौजूद हैं।
‘वैली ऑफ वर्ड्स’ के सत्र में ‘दि ओसन ऑफ चर्न एंड दि लैंड आफ सेवन रिवर्स’ के लेखक संजीव सान्याल ने इस संबंध में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि अपनी पुस्तक लिखने के लिए शोध के दौरान उन्होंने चीन में शिवालयों को देखा है।
चीन के लोग मंदिरों में अपने आराध्य की पूजा कर रहे हैं और यहां बने मंदिर 800 ईसवी के हैं। कई स्थानों पर भगवान शिव और मां पार्वती के अलग-अलग मंदिर हैं और कहीं एक मंदिर में दोनों विराजमान हैं।
चीन, कोरिया और जापान के कई स्थानों पर शिव वाहन नंदी को भी पूजा जाता है। वहां के लोगों का मानना है कि जीवन के अंत में नंदी आकर लोगों की आत्मा को स्वर्ग ले जाते हैं।
सान्याल का कहना है कि भारत, चीन, कोरिया समेत अन्य एशियाई देशों में शैव संस्कृति के साक्ष्य बिखरे पड़े हैं। इससे साबित है कि शैव विचारधारा सिर्फ भारत में नहीं पूरे एशिया में फैली रही।
संजीव सान्याल हैरत से कहते हैं कि पता नहीं क्यों? इतिहासकारों, लेखकों और विज्ञानियों का ध्यान इस तरफ नहीं गया। उनका कहना है कि उस दौर में लोग खूब समुद्री यात्राएं करते रहे।
संस्कृत, पाली, प्राकृतिक, अरबी संपर्क भाषाएं रही हैं। पानी का जहाज बनाने की कला अनोखी रही हैं। खाड़ी देश के लोग भी इसी आधार पर अपने यहां जहाज बनाते रहे और जहाज बनाने में इस कला का अभी भी इस्तेमाल होता है।
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