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यही वो असंख्य नमन करने वाला स्थल है यहीं वो अग्नि कुंड है जिसमें महारानी पद्मावती ने म्लेच्छ आक्रान्ता अलाउद्दीन की महत्वाकांक्षा और राणा रतनसिंह की अनिंद्य सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने की लालसा से अपनी रक्षा करने के लिए धधकती ज्वाला के कुंड में छलांग लगाई थी। चित्तौड़गढ़ के किले में आज उस कुंड की ओर जाने वाला रास्ता बेहद अंधेरे वाला है जिस पर कोई जाने का साहस नहीं करता ।
उस रास्ते की दीवारों तथा कई गज दूर भवनों में आज भी कुंड की अग्नि के चिन्ह और उष्णता अनुभव किया जा सकता है।...........कुंड की अग्नि के निशान आज भी दीवारों पर हैं, गर्माहट हड्डियों तक महसूस की जा सकती है। गाइड कहते हैं ये इलाका नकारात्मक शक्तियों से घिरा है इसलिए पर्यटक क्या कोई भी उधर नहीं जाना चाहता।..........विशाल अग्निकुंड की ताप से दीवारों पर चढ़े हुए चूने के प्लास्टर जल चुके हैं। चित्र में कुंड के समीप जो दरवाज़ा दिख रहा है कहा जाता है की रानी पद्मावती वही से कुंड में कूद गयी थी।..........स्थानीय लोग आज भी विश्वास के साथ कहते हैं कि इस कुंड से चीखें यदा-कदा सुनायी पड़ती रहती है और सैंकड़ों वीरांगनाओं की आत्माएं आज भी इस कुंड में मौजूद हैं ।
जो सुरंग जौहर कुंड की तरफ जाती है, आज उससे पर्यटक आधे में लौट आते हैं........उसके करीब जाना सम्भव नहीं। लोगों के खौफ का कारण , शायद अँधेरी सुरंग में कम ऑक्सीजन का होना हो सकता है , कहकर आपकी वैज्ञानिक सोच शायद इस अजीब सवाल को टालना चाहे, मगर जौहर के फैसले का मनोवैज्ञानिक असर उस क्षेत्र में महसूस होता है। रानी पद्मिनी के जौहर के लिए ख्यात चित्तौड़ के किले में ये इकलौता जौहर नहीं था। जीवन भर इस्लामिक गुलाम होने और उनके बच्चे पैदा करने का औजार बनने के बदले स्त्रियाँ हँसते मुस्कुराते आग में कूदती थी।
हाथ आग से छू भी जाए तो reflection से अपने आप वापस खिंच जाता है ...........फिर आखिर कैसे नरक की यंत्रनाओं से बचने का प्रयास था जो जीते जी वो आग में कूदती होंगी ? .........कैसा प्रेम कैसा सम्मान मिलता होगा जो छूटे तो मौत प्यारी लगेगी ? बुजुर्गों को अपनी पत्नी का नाम लेने के बदले “मालकिन” या “भागवान” कहकर बुलाते तो देखा है, कुछ पीढ़ियों पहले इस से भी ज्यादा सम्मान से रखते थे क्या ? ........हमलावर कौमों में स्त्री की क्या स्थिति थी वो तो बुर्के-तीन तलाक में दिखता है, तब कैसे रखते होंगे ?
रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी थीं। रानी पद्मिनी के स्वयंवर की शर्त थी कि उनके नियुक्त तलवारबाज से जीतना होगा। कहते है पुरुष भेष में रानी पद्मिनी ही राजा रतन सिंह से लड़ने उतरी थी। राजा रतन सिंह पहले से विवाहित थे, लेकिन स्वयंवर की शर्त पूरी करने के कारण रानी पद्मिनी ने उनसे ही शादी की। अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ की संपत्ति और रानी पद्मिनी को हथियाने की साजिश रची।
छोटी सेना और छल ना कर पाने के कारण राजा रतन सिंह, खिलजी की सेना के साथ युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। सेना के समाप्त होने की खबर पर रानियाँ और रनिवास की अन्य स्त्रियों ने जौहर का मार्ग चुना। क्यूंकि उन्हें अपनी जान से ज्यादा अपनी इज़्ज़त और आन प्यारा था
अपनी तरह का ये कोई एकलौता जौहर नहीं था, बल्कि सिर्फ इसी चित्तोर में 3 जौहर हुए थे, और भारत के अन्य शहरों में भी जौहर हुए थे जिसमे से भोपाल भी एक शहर है वहां पर भी जौहर हुए थे, जिसका इतिहास दैनिक भारत के पाठकों को हम आगे देंगे, जावेद अख्तर जैसे मलेछ लोग ये कहते है की जौहर कभी हुए ही नहीं, पद्मिनी कभी थी ही नहीं, ऐसे लोग ऐसा भी कह सकते है की भारत में हिन्दू कभी थे ही नहीं हिन्दू तो सऊदी अरब से भारत में घुस आये
source - http://www.dainik-bharat.org
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