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शिवाजी महाराज का ऐसा खौफ था की अफ़ज़ल ने अपनी 64 बीवियों का किया था क़त्ल



क्या आपने सुना है कि कोई शासक अपनी 64 पत्नियों को सिर्फ़ इसलिये मार डाले कि कहीं उसके मरने के बाद वे दोबारा शादी न कर लें… है ना आश्चर्यजनक बात!!! लेकिन सच है…

यूँ तो कर्नाटक के बीजापुर में गोल गुम्बज और इब्राहीम रोज़ा जैसी कई ऐतिहासिक इमारतें और दर्शनीय स्थल हैं, लेकिन एक स्थान ऐसा भी है जहाँ पर्यटकों को ले जाकर इस्लामी आक्रांताओं के कई काले कारनामों में से एक के दर्शन करवाये जा सकते हैं। बीजापुर-अठानी रोड पर लगभग 5 किलोमीटर दूर एक उजाड़ स्थल पर पाँच एकड़ में फ़ैली यह ऐतिहासिक कत्लगाह है। “सात कबर” (साठ कब्र का अपभ्रंश) ऐसी ही एक जगह है। इस स्थान पर आदिलशाही सल्तनत के एक सेनापति अफ़ज़ल खान द्वारा अपनी 64 पत्नियों की हत्या के बाद बनाई गई कब्रें हैं। इस खण्डहर में काले पत्थर के चबूतरे पर 64 कब्रें बनाई गई हैं।



इतिहास कुछ इस प्रकार है कि एक तरफ़ औरंगज़ेब और दूसरी तरफ़ से शिवाजी द्वारा लगातार जारी हमलों से परेशान होकर आदिलशाही द्वितीय (जिसने बीजापुर पर कई वर्षों तक शासन किया) ने सेनापति अफ़ज़ल खान को आदेश दिया कि इनसे निपटा जाये और राज्य को बचाने के लिये पहले शिवाजी पर चढ़ाई की जाये। हालांकि अफ़ज़ल खान के पास एक बड़ी सेना थी, लेकिन फ़िर भी वह ज्योतिष और भविष्यवक्ताओं पर काफ़ी भरोसा करता था। शिवाजी से युद्ध पर जाने के पहले उसके ज्योतिषियों ने उसके जीवित वापस न लौटने की भविष्यवाणी की। उसी समय उसने तय कर लिया कि कहीं उसकी मौत के बाद उसकी पत्नियाँ हिन्दुओ से दूसरी शादी न कर लें, सभी 64 पत्नियों को मार डालने की योजना बनाई।

अफ़ज़ल खान अपनी सभी पत्नियों को एक साथ बीजापुर के बाहर एक सुनसान स्थल पर लेकर गया। जहाँ एक बड़ी बावड़ी स्थित थी, उसने एक-एक करके अपनी पत्नियों को उसमें धकेलना शुरु किया, इस भीषण दुष्कृत्य को देखकर उसकी दो पत्नियों ने भागने की कोशिश की लेकिन उसने सैनिकों को उन्हें मार गिराने का हुक्म दिया। सभी 64 पत्नियों की हत्या के बाद उसने वहीं पास में सबकी कब्र एक साथ बनवाई।

आज की तारीख में इतना समय गुज़र जाने के बाद भी जीर्ण-शीर्ण खण्डहर अवस्था में यह बावड़ी और कब्रें काफ़ी ठीक-ठाक हालत में हैं। यहाँ पहली दो लाइनों में 7-7 कब्रें, तीसरी लाइन में 5 कब्रें तथा आखिरी की चारों लाइनों में 11 कब्रें बनी हुई दिखाई देती हैं और वहीं एक बड़ी “आर्च” (मेहराब) भी बनाई गई है, ऐसा क्यों और किस गणित के आधार पर किया गया, ये तो अफ़ज़ल खान ही बता सकता है। वह बावड़ी भी इस कब्रगाह से कुछ दूर पर ही स्थित है। 

अफ़ज़ल खान ने खुद अपने लिये भी एक कब्र यहीं पहले से बनवाकर रखी थी। हालांकि उसके शव को यहाँ तक नहीं लाया जा सका और मौत के बाद प्रतापगढ़ के किले में ही उसे दफ़नाया गया था, लेकिन इससे यह भी साबित होता है कि वह अपनी मौत को लेकर बेहद आश्वस्त था, भला ऐसी मानसिकता में वह शिवाजी से युद्ध कैसे लड़ता? हिन्दुओ के शान महान योद्धा शिवाजी के हाथों अफ़ज़ल खान का वध प्रतापगढ़ के किले में 1659 में हुआ

source - http://www.dainik-bharat.org

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