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जो भी गाँधी और नेहरू के आड़े आया, उसको शहीद होना पड़ा, या उसे गुम करवा दिया गया !

जो भी गाँधी और नेहरू के आड़े आया, उसको शहीद होना पड़ा, या उसे गुम करवा दिया गया !

नेहरु और गाँधी की बलवती इक्छा थी की ये तीन देशप्रेमी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी हो जाये ।
भगत सिंह जैसे देशभक्त अगर जिंदा रहते, नेहरू कभी प्रधानमंत्री नहीं बनता
और ना ही गाँधी देश का कथित राष्ट्रपिता बनता,
चंद्रशेखर आज़ाद और सुभाष चंद्र बोस का भी ऐसा ही अंजाम हुआ, जो भी गाँधी और नेहरू के आड़े आया, उसको शहीद होना पड़ा, या उसे गुम करवा दिया गया !
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने 14 फ़रवरी 1931 को लार्ड इरविन के सामने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी रोकने के लिए मर्सी पिटीसन दायर की थी ताकि उन्हें फांसी न दी जाये और कुछ सजा भी कम की जाएl लार्ड इरविन ने तब मालवीय जी से कहा कि आप कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष है इसलिए आपको इस पिटीसन के साथ नेहरु, गाँधी के पत्र भी लाने होंगे।
जब मालवीय जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के बारे में नेहरु और गाँधी से बात की तो उन्होंने इस बात पर चुप्पी साध ली और अपनी सहमति नहीं दी । रिटायर होने के बाद लार्ड इरविन ने स्वयं लन्दन में कहा था कि ”यदि नेहरु और गाँधी एक बार भी भगत सिंह की फांसी रुकवाने की अपील करते तो हम निश्चित ही उनकी फांसी रद्द कर देते, लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ कि गाँधी और नेहरु को इस बात की हमसे भी ज्यादा जल्दी थी कि भगत सिंह को फांसी दी जाएl”
प्रोफ़ेसर कपिल कुमार की किताब के अनुसार ”गाँधी और लार्ड इरविन के बीच जब समझौता हुआ उस समय इरविन इतना आश्चर्य में था कि गाँधी और नेहरु में से किसी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को छोड़ने के बारे में चर्चा तक नहीं की l” इरविन ने अपने दोस्तों से कहा कि ‘हम यह मानकर चल रहे थे कि गाँधी और नेहरु भगत सिंह की रिहाई के लिए अड़ जायेंगे और हम उनकी यह बात मान लेंगे।
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी लगाने की इतनी जल्दी तो अंग्रेजों को भी नही थी जितनी कि गाँधी और नेहरु को थी क्योंकि भगत सिंह तेजी से भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे थे जो कि गाँधी और नेहरु को बिलकुल रास नहीं आ रहा थाl यही कारण था कि वो चाहते थे कि जल्द से जल्द भगत सिंह को फांसी दे दी जाये, यह बात स्वयं इरविन ने कही है ।
इसके अतिरिक्त लाहौर जेल के जेलर ने स्वयं गाँधी को पत्र लिखकर पूछा था कि ‘इन लड़कों को फांसी देने से देश का माहौल तो नहीं बिगड़ेगा?‘ तब गाँधी ने उस पत्र का लिखित जवाब दिया था कि ‘आप अपना काम करें कुछ नहीं होगा l’
चंद्रशेखर आज़ाद को भी मुखबिरी करके नेहरू ने इलाहबाद में मरवा दिया और इसी नेहरू ने नेताजी बोस को भी मरवाने की प्लानिंग की थी
उसने ब्रिटिश PM चर्चिल और रुसी शासक को पत्र लिखा था की, बोस अपने देश में हो सकता है वो युद्ध अपराधी है, उसे खोजकर फांसी दे दीजिये
और इस सबके बावजूद भी अगर कोई ये कहे की कांग्रेसी देश भक्त है तो मेरा ये मानना है कि उससे ज्यादा तर्कसंगत तो ये कहना होगा की कांग्रेस देशभक्त नही केवल गाँधी नेहरु भक्त है । जो भी गाँधी और नेहरू के आड़े आया, उसको शहीद होना पड़ा, या उसे गुम करवा दिया गया !.
Source - http://hinduakhbar.com

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