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ऋषि-मुनियों ने वेदों में ज्ञान संजोया है, अब मान रहा विज्ञान !
हमारी पांच हजार
वर्ष प्राचीन संस्कृति
में वेदों का
महत्व है। वेदों
में ऋषि-मुनीओं
का चिंतन था, जिसे
विज्ञान अपने स्तर
पर धीरे-धीरे
प्रमाणित करता रहा
है। अब यह
मात्र दर्शन का
विषय नहीं रहा।
वेदों में चिंतन की
प्रामाणिकता विज्ञान से सिद्ध
हो गई है।
नासा के
वैज्ञानिक, वेद मनीषी
और प्रधानमंत्री के
पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार
प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय
ने राजस्थान पत्रिका से एक
विशेष भेंट में
यह बात कही।
प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय जयनारायण
व्यास विश्वविद्यालय
संस्कृत विभाग, पंडित मधुसूदन
ओझा शोध प्रकोष्ठ
और महर्षि सान्दीपनी
रास्टीय वेद
विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन की
ओर से आयोजित
वेद भाष्यों पर
चिंतन विषयक
राष्ट्रीय संगोष्ठी में शिरकत
करने के लिए
जोधपुर आए हुए
थे।
जीव धरती पर
अंतरिक्ष
से
आया है
उन्होंने बताया है कि जिनोम
थ्योरी में श्रीलंका
के वैज्ञानिक विक्रम
सिंघे और ब्रिटिश
वैज्ञानिक हॉल ने
मिलकर सन १९४२
में सिद्ध किया
था कि जीव
इस धरती पर अंतरिक्ष
से आया है।
इसमें बताया गया
है कि, वैज्ञानिक
टर्म में फार्माडिहाइल
का अंतरिक्ष में
एक जैविक बादल बनता
है, रेडिएशन के
माध्यम से इस
बादल में से
स्राव होता है। यह
स्राव बहुत सूक्ष्म
होता है। विज्ञान
में इस स्राव
को टीएनए (थ्रेसस
न्यूक्लियर एसिड) कहते हैं। यह
सूर्य की रश्मियों
के माध्यम से
ओजोन लेयर के
भीतर प्रवेश करने
में सफल हो
जाता है।
सौरमंडल में बने
थे
जैविक
बादल
प्रो. ओमप्रकाश पाण्डेय ने
बताया कि, ये
बादल आज से
पांच बिलियन वर्ष
पहले इस सौर
मंडल क्षेत्र के
ऊपर बने थे।
ये बादल बनते रहते
हैं। हमारा सौरमंडल
उसके नजदीक पहुंचा
था, इसलिए यह
ओजोन लेयर में
प्रवेश कर गया
था। जब धरती,
माटी और जल
का संयोग हुआ
तो इस तापमान
में यह डीएनए
में कन्वर्ट हो
कर प्रोटीन बनाने लगा।
उसके बाद से
एक कोशीय जीव
से बहुकोशीय जीव
संरचना शुरू हुई।
सूर्य रश्मि जीवो
अभि
जयते
उन्होंने बताया कि, ऋग्वेद
के दसवें मंडल
में एक पंक्ति
है, ‘सूर्य रश्मि
जीवो अभि जयते।’
अर्थात सूर्य रश्मियों के
माध्यम से जीव
यहां पर उत्पन्न
होने लगे। इस
मंत्र में ऋषि-मुनीओं ने यह
बताया है कि,
पूर्वजों के संस्कार
गुणसूत्रों के माध्यम
से नई संतति
में स्थानांतरित होते
हैं।
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